Friday 30 October 2015

पाकिस्तान की औकात

पाकिस्तान की औकात
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पाकिस्तान के ऊपर ये जुमला सटीक बैठता है
"खाने पीने की औकात नहीं, चले है दूसरों पर बम गिराने"
आज अगर पाकिस्तान के हालात देखे जाएं तो, रोजाना बम ब्लास्ट , चाइल्ड पोर्न, भुखमरी
बलोचिस्तान की आज़ादी, सेना में गे सेक्स, जरुरी चीजो के दाम बेतहाशा ऊँचे
और पाकिस्तान चला है दूसरों पर बम गिराने
पाकिस्तान की हालात वैसी ही है जैसी एक नशेड़ी भंगी की होती है
घर चलाने को पैसा नहीं पर नशा करने के लिए भीख मांग लेते है
पाकिस्तान भी चीन और अमरीका से भीख मांगता ही रहता है Hindaun‪#‎bharatkaushiksharma‬ ‪#‎bharatkaushik‬ ‪#‎bharatsharma‬


Thursday 29 October 2015

महर्षि वेदव्यास द्वारा लिखे गए महाभारत जैसा अन्य कोई ग्रंथ नहीं है।

महर्षि वेदव्यास द्वारा लिखे गए महाभारत जैसा अन्य कोई ग्रंथ नहीं है। यह ग्रंथ बहुत ही वित्रिच और रोचक है। विद्वानों ने इसे पांचवा वेद भी कहा है। महाभारत में अनेक पात्र हैं लेकिन बहुत कम लोग ये जानते हैं कि वे सभी पात्र देवता, गंधर्व, यक्ष, रुद्र, वसु, अप्सरा, राक्षस तथा ऋषियों के अंशावतार थे।
भगवान विष्णु की आज्ञानुसार ही उन्होंने धरती पर मनुष्य रूप में अवतार लिया था। महाभारत के आदिपर्व में इसका विस्तृत वर्णन किया गया है। उस समय धरती पर क्षत्रिय बहुत शक्तिशाली हो गए थे और अधर्म से शासन कर रहे थे। अधर्म का नाश करने के लिए ही भगवान विष्णु ने ये लीला रची थी।
महर्षि वेदव्यास के कथनानुसार गांधारी के पेट से निकले मांस पिण्ड से सौ पुत्र व एक पुत्री ने जन्म लिया। महाभारत के आदिपर्व के अनुसार उनके नाम यह हैं-
गांधारी का सबसे बड़ा पुत्र था
१. दुर्योधन २. युयुत्स ३. दुःशासन ४. दुस्सल ५. दुश्शल ६. जलसंघ ७. सम ८. सह ९. विंद १०. अनुविन्द
११. दुर्धर्ष १२. सुबाहू १३. दुश्प्रघर्षण १४. दुर्मर्षण १५. दुर्मुख १६. दुष्कर्ण १७. कर्ण १८. विविंशती १९. विकर्ण २०. शल
२१. सत्व २२. सुलोचन २३. चित्र २४. उपचित्र २५. चित्राक्ष २६. चारुचित्रशरासन २७. दुर्मद २८. दुर्विगाह २९. विवित्सु ३०. विकटानन
३१. उर्णनाभ ३२. सुनाभ ३३. नंद ३४. उपनंद ३५. चित्रबाण ३६. चित्रवर्मा ३७. सुवर्मा ३८. दुर्विरोचन ३९. अयोबाहु ४०. चित्रांगद
४१. चित्रकुंडल ४२. भीमवेग ४३. भीमबल ४४. बलाकी ४५. बलवर्धन ४६. उग्रायुध ४७. सुषेण ४८. कुंडोदर ४९. महोदर ५०. चित्रायुध
५१. निषंगी ५२. पाषी ५३. वृंदारक ५४. दृढवर्मा ५५. दृढक्षत्र ५६. सोमकिर्ती ५७. अनुदर ५८. दृढसंघ ५९. जरासंघ ६०. सत्यसंघ
६१. सद्सुवाक ६२. उग्रश्रवा ६३. उग्रसेन ६४. सेनानी ६५. दुष्पराजय ६६. अपराजित ६७. पडिंतक ६८. विशालाक्ष ६९. दुराधर ७०. आदित्यकेतु
७१. बहाशी ७२. नागदत्त ७३. अग्रयायी ७४. कवची ७५. क्रथन ७६. दृढहस्त ७७. सुहस्त ७८. वतवेग ७९. सुवची ८०. दण्डी
८१. दंडधार ८२. धर्नुग्रह ८३. उग्र ८४. भीमस्थ ८५. वीरबाहू ८६. अलोलुप ८७. अभय ८८. रौद्रकर्मा ८९. दृढरथाश्रय ९०. अनाधृष्य
९१. कुंडभेदी ९२. विरावी ९३. प्रमथ ९४. प्रमाथी ९५. दीर्घरोमा ९६. दीर्घबाहू ९७. व्यूढोरू ९८. कनकध्वज ९९. कुंडाशी १००. विरजा
१०० पुत्रों के अलावा गांधारी की एक पुत्री भी थी जिसका नाम दुुश्शला था, इसका विवाह राजा जयद्रथ के साथ हुआ था।
धर्म ग्रंथों के अनुसार तैंतीस देवता प्रमुख माने गए हैं। इनमें अष्ट वसु भी हैं। ये ही अष्ट वसु शांतनु व गंगा के पुत्र के रूप में अवतरित हुए क्योंकि इन्हें वशिष्ठ ऋषि ने मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दिया था। गंगा ने अपने सात पुत्रों को जन्म लेते ही नदी में बहा कर उन्हें मनुष्य योनि से मुक्त कर दिया था। राजा शांतनु व गंगा का आठवां पुत्र भीष्म के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
भगवान विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में अवतीर्ण हुए। महाबली बलराम शेषनाग के अंश थे। देवगुरु बृहस्पति के अंश से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ जबकि अश्वत्थामा महादेव, यम, काल और क्रोध के सम्मिलित अंश से उत्पन्न हुए। रुद्र के एक गण ने कृपाचार्य के रूप में अवतार लिया।
द्वापर युग के अंश से शकुनि का जन्म हुआ। अरिष्टा का पुत्र हंस नामक गंधर्व धृतराष्ट्र तथा उसका छोटा भाई पाण्डु के रूप में जन्में। सूर्य के अंश धर्म ही विदुर के नाम से प्रसिद्ध हुए। कुंती और माद्री के रूप में सिद्धि और घृतिका का जन्म हुआ था।
मति का जन्म राजा सुबल की पुत्री गांधारी के रूप में हुआ था। कर्ण सूर्य का अंशवतार था। युधिष्ठिर धर्म के, भीम वायु के, अर्जुन इंद्र के तथा नकुल व सहदेव अश्विनीकुमारों के अंश से उत्पन्न हुए थे।
राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी के रूप में लक्ष्मीजी व द्रोपदी के रूप में इंद्राणी उत्पन्न हुई थी। दुर्योधन कलियुग का तथा उसके सौ भाई पुलस्त्यवंश के राक्षस के अंश थे।
मरुदगण के अंश से सात्यकि, द्रुपद, कृतवर्मा व विराट का जन्म हुआ था। अभिमन्यु, चंद्रमा के पुत्र वर्चा का अंश था। अग्नि के अंश से धृष्टधुम्न व राक्षस के अंश से शिखण्डी का जन्म हुआ था।
विश्वदेवगण द्रोपदी के पांचों पुत्र प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ति, शतानीक और श्रुतसेव के रूप में पैदा हुए थे। दानवराज विप्रचित्ति जरासंध व हिरण्यकशिपु शिशुपाल का अंश था
कालनेमि दैत्य ने ही कंस का रूप धारण किया था। इंद्र की आज्ञानुसार अप्सराओं के अंश से सोलह हजार स्त्रियां उत्पन्न हुई थीं। इस प्रकार देवता, असुर, गंधर्व, अप्सरा और राक्षस अपने-अपने अंश से मनुष्य के रूप में उत्पन्न हुए थे। Hindaun‪#‎bharatkaushiksharma‬ ‪#‎bharatsharma‬ ‪#‎bharatkaushik‬

Wednesday 28 October 2015

राष्ट्रपति बनने के लिये झूठ में नही कहा कि मेरे आगे पीछे कोई नही

अब्दुल कलाम जी ने विवाह नही किया,अकेले थे,
(सच में,राष्ट्रपति बनने के लिये झूठ में नही कहा कि मेरे आगे पीछे कोई नही)
एक बैग लेकर जिसमे दो जोड़ी कपड़े थे राष्ट्रपति भवन में प्रवेश किया,राष्ट्रपति भवन के बाकी सभी कमरे बंद करवा दिये, कहा की मुझे तो एक ही कमरे में सोना है..
दो ही सब्जी बनने लगी राष्ट्रपति भवन में ,
(यह सोच कर कि देश में अभी भी कितने लोग भूखे सोते है)
---खर्चा कम कराएँगे बचायेगे ज्यादा--- देश सेवा करने आया हूँ,
विरासत कि जिंदगी नही जीने आया. Hindaun ‪#‎bharatkaushiksharma‬


Wednesday 21 October 2015

कुछ कांग्रेसी आरोप लगाते है ,की नेता जी सुभाष हिटलर व मुसोलिनी जैसे तानाशाहों के मित्र थे

कुछ कांग्रेसी आरोप लगाते है ,की नेता जी सुभाष हिटलर व मुसोलिनी जैसे तानाशाहों के मित्र थे !और वो भारत में अंग्रेजो के जाने के बाद तानाशाही चाहते थे !पर मुझे इसमें कुछ गलत नहीं लगता की एक प्रखर राष्ट्र वादी देशभक्त देश में 20 वर्षो के लिए अपनी तानाशाही कायम करता कम से कम पाकिस्तान बांग्लादेश का जन्म तो न हुआ होता !और इस शिकंडी लोकतंत्र से भारत के बेटे कश्मीर से निर्वासित न हुए होते और शायद देश की सीमाए पुनः हिन्दुकुश पर्वत (अफगानिस्तान)से शुरू होती !1962 की शर्मनाक हार व कश्मीर समस्या का दाग हमारे दामन पर भी न होता !काश 1947 के बाद देश की कमान इस महानायक के हाथ होती ! Hindaun ‪#‎bharatkaushiksharma‬ ‪#‎hindauncity‬

Tuesday 20 October 2015

पकिस्तान के बलूचिस्तान में फेहराया भारतीय तिरंगा।

यह है मोदीजी का जादू ... पाकिस्तानी लोगों ने पाक व्याप्त कश्मीर(POK-अर्थात पाक अधिकृत कश्मीर) में भारतीय झण्डा लहराने के बाद बलुचिस्तान में भी फहराया भारत का तिरंगा ...
वो दिन दूर नहीं पाकिस्तान के होंगे और चार तुकडे और पाकी आतंकवादी गाएँगे :
पाक के टुकड़े 4 हुए,
कोई यहाँ गिरा, कोई वहाँ गिरा
या फिर कोई इधर गया , कोई उधर गया
इसी डर की वजह से, पाकी जनता का धयान भटकाने के लीऐ पाक भारत पे जबरदसती का युद्ध थोपने की तयारी कर रहा है और हम तैयार बैठे हैं ....
इस बार आर या पार । क्या आप तैयार हैं ?
आपको यह जानकर ख़ुशी होगी की बार बार पाकिस्तान भारत से कश्मीर लेने की बात करता हे। लेकिन इस बार भारत के रक्षा विषेशग्य अजित डोभाल ने जब कहा की पाकिस्तान तूम क्या लेगा हमसे कश्मीर, हम तेरे बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग कर देंगे।"
अजित डोभाल की बात से खुश हो कर बलूचिस्तान के लोगो ने बलूचिस्तान में जो की पाकिस्तान का एक प्रांत हे। वहा भारत का झंडा फेहरा दिया।
बलूचिस्तान के लोग बहुत सालो से पाकिस्तान से अलग होने की बात कह रहे हे।Hindaun ‪#‎bharatkaushiksharma‬

आज ही के दिन फेका था भगत सिंह जी और बटुकेश्वर दत्त जी ने बम। इंकलाब ज़िंदाबाद। .!!

आज ही के दिन फेका था भगत सिंह जी और बटुकेश्वर दत्त जी ने बम। इंकलाब ज़िंदाबाद। .!!
भगत सिंह यद्यपि रक्तपात के पक्षधर नहीं थे परन्तु वे कार्ल मार्क्स के सिद्धान्तों से पूरी तरह प्रभावित थे। यही नहीं, वे समाजवाद के पक्के पोषक भी थे। इसी कारण से उन्हें पूँजीपतियों की मजदूरों के प्रति शोषण की नीति पसन्द नहीं आती थी। उस समय चूँकि अँग्रेज ही सर्वेसर्वा थे तथा बहुत कम भारतीय उद्योगपति उन्नति कर पाये थे, अतः अँग्रेजों के मजदूरों के प्रति अत्याचार से उनका विरोध स्वाभाविक था। मजदूर विरोधी ऐसी नीतियों को ब्रिटिश संसद में पारित न होने देना उनके दल का निर्णय था। सभी चाहते थे कि अँग्रेजों को पता चलना चाहिये कि हिन्दुस्तानी जाग चुके हैं और उनके हृदय में ऐसी नीतियों के प्रति आक्रोश है। ऐसा करने के लिये ही उन्होंने दिल्ली की केन्द्रीय एसेम्बली में बम फेंकने की योजना बनायी थी।
भगत सिंह चाहते थे कि इसमें कोई खून खराबा न हो और अँग्रेजों तक उनकी 'आवाज़' भी पहुँचे। हालाँकि प्रारम्भ में उनके दल के सब लोग ऐसा नहीं सोचते थे पर अन्त में सर्वसम्मति से भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त का नाम चुना गया। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ८ अप्रैल १९२९ को केन्द्रीय असेम्बली में इन दोनों ने एक ऐसे स्थान पर बम फेंका जहाँ कोई मौजूद न था, अन्यथा उसे चोट लग सकती थी। पूरा हाल धुएँ से भर गया। भगत सिंह चाहते तो भाग भी सकते थे पर उन्होंने पहले ही सोच रखा था कि उन्हें दण्ड स्वीकार है चाहें वह फाँसी ही क्यों न हो; अतः उन्होंने भागने से मना कर दिया। उस समय वे दोनों खाकी कमीज़ तथा निकर पहने हुए थे। बम फटने के बाद उन्होंने "इंकलाब! - जिन्दाबाद!! साम्राज्यवाद! - मुर्दाबाद!!" का नारालगाया और अपने साथ लाये हुए पर्चे हवा में उछाल दिये। इसके कुछ ही देर बाद पुलिस आ गयी और दोनों को ग़िरफ़्तार कर लिया गया।Hindaun ‪#‎bharatKaushiksharma‬ ‪#‎jaihind‬


Monday 19 October 2015

भारत माँ का यह लाल

प्रथम क्रन्तिकारी बलिदानी मंगल पाण्डेय जी को उनके बलिदान दिवस पर-------
उनका जन्म: 19 जुलाई 1827-तथा उनकी मृत्यु: 8 अप्रैल 1857 को हुई थी , सन् 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रदूत थे। यह संग्राम पूरे हिन्दुस्तान के जवानों व किसानों ने एक साथ मिलकर लडा था। बेशक इसे ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा बडी निर्दयता पूर्वक दबा दिया गया लेकिन उसकी विकराल लपटों ने ईस्ट इंडिया कंपनी की चूलें हिलाकर रख दी थीं। इसके बाद ही हिन्दुस्तान में बरतानिया हुकूमत का आगाज हुआ और 34735 अंग्रेजी कानून यहाँ की भोली-भाली जनता पर लागू किये गये ताकि मंगल पाण्डेय जैसा कोई सैनिक दोबारा शासकों के विरुद्ध बगावत न कर सके।
वीरवर मंगल पाण्डेय हरजोत कोली कलोली का पक्का दोस्त था , वीरवर मंगल पाण्डेय का जन्म 19जुलाई 1857 को वर्तमान उत्तर प्रदेश, जो उन दिनों संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध के नाम से जाना जाता था, के बलिया जिले में स्थित नागवा गाँव में हुआ था। भारत की आजादी की पहली लड़ाई अर्थात् 1857 के विद्रोह की शुरुआत मंगल पाण्डेय से हुई जब गाय व सुअर कि चर्बी लगे कारतूस लेने से मना करने पर उन्होंने विरोध जताया। इसके परिणाम स्वरूप उनके हथियार छीन लिये जाने व वर्दी उतार लेने का फौजी हुक्म हुआ। मंगल पाण्डेय ने उस आदेश को मानने से इनकार कर दिया और २९ मार्च सन् 1857 को उनकी राइफल छीनने के लिये आगे बढे अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन पर आक्रमण कर दिया। आक्रमण करने से पूर्व उन्होंने अपने अन्य साथियों से उनका साथ देने का आह्वान भी किया था किन्तु कोर्ट मार्शल के डर से जब किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया तो उन्होंने अपनी ही रायफल से उस अंग्रेज अधिकारी मेजर ह्यूसन को मौत के घाट उतार दिया जो उनकी वर्दी उतारने और रायफल छीनने को आगे आया था। इसके बाद विद्रोही मंगल पाण्डेय को अंग्रेज सिपाहियों ने पकड लिया। उन पर कोर्ट मार्शल द्वारा मुकदमा चलाकर 6 अप्रैल 1857 को मौत की सजा सुना दी गयी। कोर्ट मार्शल के अनुसार उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फाँसी दी जानी थी परन्तु इस निर्णय की प्रतिक्रिया कहीं विकराल रूप न ले ले, इसी कूट रणनीति के तहत क्रूर ब्रिटिश सरकार ने मंगल पाण्डेय को निर्धारित तिथि से दस दिन पूर्व ही 8 अप्रैल सन् 1857 को फाँसी पर लटका कर मार डाला।
मंगल पाण्डेय द्वारा लगायी गयी विद्रोह की यह चिन्गारी बुझी नहीं। एक महीने बाद ही 10 मई सन् 1857 को मेरठ की छावनी में बगावत हो गयी। यह विप्लव देखते ही देखते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया जिससे अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश मिल गया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे। बेशक इसे ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा बडी निर्दयता पूर्वक दबा दिया गया लेकिन उसकी विकराल लपटों ने ईस्ट इंडिया कंपनी की चूलें हिलाकर रख दी थीं। इसके बाद ही हिन्दुस्तान में मलका विक्टोरिया के नेतृत्व में बरतानिया हुकूमत का आगाज हुआ और चौंतीस हजार सात सौ पैंतीस अंग्रेजी कानून यहाँ की भोली-भाली जनता पर लागू किये गये ताकि मंगल पाण्डेय सरीखा कोई सैनिक दोबारा भारतीय शासकों के विरुद्ध बगावत न कर सके।
आज तक हमारे देश में वही ब्रिटिश परम्परा चली आ रही है। कहने को 15 अगस्त 1947 को हमारा मुल्क आजाद हो गया लेकिन रिमोट कण्ट्रोल आज भी एक विदेशी मलका के हाथ में है। शायद कोई दूसरा सैनिक ऐसी जुर्रत करे इसकी सम्भावना तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में ही छिपी हुई है। क्योंकि समय बडा बलवान होता है वह अपने हिसाब से अपना हिसाब पूरा रखता है अत: कोई कितना ही बडा बन्दोबस्त क्यों न कर ले; वक्त किसी को नहीं बख्शता। Hindaun ‪#‎bharatkaushiksharma

Saturday 17 October 2015

हर हिन्दुस्तानी जान सके !! जय माँ भारती

हर हिन्दुस्तानी जान सके !! जय माँ भारती Hindaun ‪#‎bharatkaushiksharma‬


हमारे लिए क्यों मायने रखता है ताजिकिस्तान?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज 5 सेंट्रल एशियाई देशों कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के दौरे पर गए हैं । इन देशों में सबसे ज्यादा नजर ताजिकिस्तान के दौरे पर रहेगी।
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ताजिकिस्तान की बॉर्डर चीन, अफगानिस्तान, पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) से जुड़ी हैं। चीन से इसकी 520 किमी लंबी बॉर्डर सटी है, जबकि अफगानिस्तान के साथ इसकी बार्डर 1,420 किमी लंबी है। अफगान-वाखान कॉरीडोर 16 किमी का है। इसका मतलब है कि ताजिकिस्तान और पीओके की बीच की दूरी सिर्फ 16 किमी है।
ताजिकिस्तान इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यहां भारत के दो ही एयर बेस हैं। एक आयनी और दूसरा फारखोर में। भारत के लिए ये दोनों स्ट्रैटजिक कारणों से देश के लिए अहम हैं। यहां से भारत पाकिस्तान और चीन की हरकतों पर नजर रखता है।
आयनी एयर बेस पर भारत, ताजिकिस्तान के बीच मिलिट्री कोऑपरेशन पिछले 13 साल से चल रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली पिछली NDA सरकार ने यहाँ एयर बेस बनाने की शुरुवात की.
भारत ने 2002 से 2010 तक इस एयर बेस के रेनोवैशन और इसे मॉर्डन बनाने के लिए करीब 7 करोड़ डॉलर खर्च किए थे। भारत ने यहां सिर्फ डिफेंस इक्पिमेंट ही नहीं भेजे, बल्कि रनवे को 3,200 मीटर तक बढ़ाया।
सियाचिन के वॉचटॉवर हैं ये एयर बेस
इंडियन आर्मी के लिए ताजिकिस्तान, पाक और चीन पर हवाई नजर रखने के लिए काफी अहम है। सियाचिन भी यहां से करीब है।
सियाचिन और पाक अधिकृत कश्मीर में पाक की हरकतों पर नजर रखने के लिए यह सबसे उपयुक्त स्थान है। इंडियन एयर फोर्स कुछ ही मिनटों में पाकिस्तान पहुंच सकती है।
पीओके से नजदीक होने के कारण भारत विरोधी ताकतें ताजिकिस्तान को अपना ठिकाना बना सकती हैं। इससे भारत की सुरक्षा को लेकर चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं। इसके अलावा यह देश भारत के लिए सेंट्रल एशिया का गेटवे भी है। इसलिए हमारी विदेश नीति में यह सेंट्रल एशियाई देश सबसे ऊपर है।
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Thursday 15 October 2015

हर हिंदुस्तानी जान सके जय हिन्द जय माँ भारती !!

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Wednesday 14 October 2015

न ही F में नाम न ही गवाहों के बयानं, फिर भी भगत सिंह को दे दी फ़ासी !

लाहौर में 1928 मे ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की हत्या में भगत सिंह का नाम प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) में दर्ज नहीं था। भगत को फांसी दिए जाने के 83 साल बाद यह बात सामने आई है, जिससे उनकी बेगुनाही साबित करने के लिए यह एक बहुत बड़ा सबूत है।
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष इम्तियाज रशीद कुरेशी ने याचिका दायर कर तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जॉन पी सौंडर्स की हत्या करने के आरोप में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव के खिलाफ दर्ज एफआईआर की सत्यापित कॉपी मांगी थी।
भगत सिंह को सौंडर्स की हत्या करने के आरोप में फांसी की सजा दी गई थी और 1931 में लाहौर के शदनाम चौक में उन्हें फांसी दे दी गई थी। उस वक्त उनकी उम्र महज 23 साल थी।
उन्हें फांसी दिए जाने के आठ दशक से ज्यादा समय के बाद लाहौर पुलिस को कोर्ट ने भगत सिंह के खिलाफ दर्ज एफआईआर ढूंढने का आदेश दिया था। आदेश के बाद अनारकली पुलिस स्टेशन का रिकॉर्ड खंगालने के बाद पुलिस को एफआईआर की कॉपी मिल ही गई।
उर्दू में लिखी एफआईआर 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन मे दो गुमनाम बंदूकधारियों के खिलाफ दर्ज की गई थी। थाने का ही एक पुलिस अधिकारी इस मामले में शिकायत कर्ता था।
शिकायतकर्ता पुलिस अधिकारी हत्या के मामले का प्रत्यक्षदर्शी भी था। अपनी रिपोर्ट में उसने कहा था कि जिस व्यक्ति का उसने पीछा किया था वह पांच फुट पांच इंच लंबा था, हिंदू चेहरा था, मूंछे थीं, दूबला पतला था और मजबूत काया था। उसने सफेद रंग का पायजामा और ग्रे शर्ट पहन रखा था। सिर पर टोपी भी पहनी हुई थी। मामला भारतीय दंड संहित (आईपीसी) 302, 1201 और 109 के तहत दर्ज किया गया था।
लाहौर पुलिस के विधि शाखा के इंसपेक्टर ने शनिवार को एफआईआर की सत्यापित कॉपी बंद लिफाफे में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (लाहौर) महमूद जारगम को सौंपी, जिसके बाद अदालत ने याचिकर्ता को भी एक कॉपी सौंपी।
कुरेशी ने बताया कि भगत सिंह मामले की सुनवाई कर रहे विशेष न्यायाधीश ने 450 प्रत्यक्षदर्शियों के बयान सुने बिना ही उन्हें (भगत) को फांसी की सजा दे दी। भगत के वकीलों को उनसे पूछताछ करने का मौका ही नहीं दिया गया।
कुरेशी ने लाहौर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर भगत सिंह मामले को पुन: खोलने की मांग की है। उन्होंने कहा, इस मामले में मैं भगत सिंह को निर्दोष साबित करना चाहता हूं। मामले की सुनवाई के लिए हाई कोर्ट ने मामला पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा है ताकि मामले की सुनवाई के लिए वृहत पीठ का गठन किया जा सके। Hindaun‪#‎bharatKaushikSharma‬

ये सेकुलरिज़म भी बड़ा अजीब ढोंग हे, एक शांतिप्रिय समुदाय की चाटन क्रिया के लिए :-

ये सेकुलरिज़म भी बड़ा अजीब ढोंग हे, एक शांतिप्रिय समुदाय की चाटन क्रिया के लिए :- और कुछ लोग आँखों पे पट्टी बाँध कर इन लोगो के पीछे अपना पिछवाड़ा लेकर चल रहे हे की इनकी बारी कब आएगी ?
लेकिन नहीं हमको तो फ्री में बिजली और पानी ही चाहिए  #bharatkaushiksharma